More

    समलैंगिक विवाह के फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिकाएं खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने की ये टिप्पणी

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (9 जनवरी)को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने वाले अपने पहले के फैसले को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इसमें ‘कोई त्रुटि नहीं है और हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।’

    अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए संविधान या कानून में कोई आधार नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन करने से भी इनकार कर दिया। अल्पमत के न्यायाधीशों ने समलैंगिक जोड़ों को सिविल यूनियन का अधिकार देने का समर्थन किया। सिविल यूनियन एक ऐसा दर्जा है जो कानूनी रूप से विवाह से अलग होता है लेकिन इसमें कुछ अधिकार दिए जाते हैं।

    LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों की बात

    सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि पहले के फैसले में “रिकॉर्ड के अनुसार कोई त्रुटि नहीं थी।” इसलिए, पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।

    कोर्ट ने कहा कि LGBTQIA+ समुदाय को समान अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन समलैंगिक विवाह को मान्यता देना संसद का काम है, न कि न्यायालय का।

    याचिकाकर्ताओं की दलील

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने समलैंगिक जोड़ों को छिपकर और असुरक्षित जीवन जीने के लिए मजबूर किया है।

    न्यायपालिका और संसद की भूमिका

    बहुमत वाले फैसले में कहा गया कि शादी और उससे जुड़े अधिकारों को लेकर कानून बनाना संसद का काम है। न्यायालय इस पर हस्तक्षेप नहीं करेगा।

    अल्पमत की राय

    तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल ने कहा था कि समलैंगिक जोड़ों को सिविल यूनियन का अधिकार मिलना चाहिए। यह उनके रिश्तों को कानूनी मान्यता देगा और उनके अधिकारों को संरक्षित करेगा।

    LGBTQIA+ समुदाय के लिए संदेश

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि समलैंगिकता “न तो शहरी है और न ही अभिजात्य।” यह रिश्ते प्राचीन काल से समाज का हिस्सा रहे हैं।

    भविष्य की राह

    यह मुद्दा अब संसद और नीति निर्माताओं के लिए है। LGBTQIA+ समुदाय और उनके सहयोगी इस विषय पर जन जागरूकता और नीति निर्माण की ओर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

    सेम सेक्स मैरिज मामले की टाइमलाइन

    • 6 सितंबर 2018:सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाले IPC के सेक्शन 377 के एक हिस्से को खत्म किया।
    • 25 नवंबर 2022 : स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सेम-सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने के लिए दो गे कपल की अर्जी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा।
    • 6 जनवरी 2023 : सुप्रीम कोर्ट का आदेश- अलग-अलग हाईकोर्ट में सेम-सेक्स मैरिज को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करें। ऐसी 21 याचिकाएं थीं।
    • 12 मार्च : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया।
    • 13 मार्च : सुप्रीम कोर्ट ने केस कॉन्स्टिट्यूशन बेंच के पास भेजा।
    • 15 अप्रैल : सुप्रीम कोर्ट ने 5 जजों की बेंच गठित की।
    • 18 अप्रैल : सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की।
    • 11 मई : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।
    • 17 अक्टूबर : सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से इनकार किया।

    Related articles

    Comments

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here

    Share article

    spot_img

    Latest articles

    Newsletter

    [tdn_block_newsletter_subscribe description="U3Vic2NyaWJlJTIwdG8lMjBzdGF5JTIwdXBkYXRlZC4=" input_placeholder="Your email address" btn_text="Subscribe" tds_newsletter2-image="753" tds_newsletter2-image_bg_color="#c3ecff" tds_newsletter3-input_bar_display="row" tds_newsletter4-image="754" tds_newsletter4-image_bg_color="#fffbcf" tds_newsletter4-btn_bg_color="#f3b700" tds_newsletter4-check_accent="#f3b700" tds_newsletter5-tdicon="tdc-font-fa tdc-font-fa-envelope-o" tds_newsletter5-btn_bg_color="#000000" tds_newsletter5-btn_bg_color_hover="#4db2ec" tds_newsletter5-check_accent="#000000" tds_newsletter6-input_bar_display="row" tds_newsletter6-btn_bg_color="#da1414" tds_newsletter6-check_accent="#da1414" tds_newsletter7-image="755" tds_newsletter7-btn_bg_color="#1c69ad" tds_newsletter7-check_accent="#1c69ad" tds_newsletter7-f_title_font_size="20" tds_newsletter7-f_title_font_line_height="28px" tds_newsletter8-input_bar_display="row" tds_newsletter8-btn_bg_color="#00649e" tds_newsletter8-btn_bg_color_hover="#21709e" tds_newsletter8-check_accent="#00649e" tdc_css="eyJhbGwiOnsibWFyZ2luLWJvdHRvbSI6IjAiLCJkaXNwbGF5IjoiIn19" embedded_form_code="YWN0aW9uJTNEJTIybGlzdC1tYW5hZ2UuY29tJTJGc3Vic2NyaWJlJTIy" tds_newsletter1-f_descr_font_family="521" tds_newsletter1-f_input_font_family="521" tds_newsletter1-f_btn_font_family="521" tds_newsletter1-f_btn_font_transform="uppercase" tds_newsletter1-f_btn_font_weight="600" tds_newsletter1-btn_bg_color="#dd3333" descr_space="eyJhbGwiOiIxNSIsImxhbmRzY2FwZSI6IjExIn0=" tds_newsletter1-input_border_color="rgba(0,0,0,0.3)" tds_newsletter1-input_border_color_active="#727277" tds_newsletter1-f_descr_font_size="eyJsYW5kc2NhcGUiOiIxMiIsInBvcnRyYWl0IjoiMTIifQ==" tds_newsletter1-f_descr_font_line_height="1.3" tds_newsletter1-input_bar_display="eyJwb3J0cmFpdCI6InJvdyJ9" tds_newsletter1-input_text_color="#000000" tds_newsletter1-input_border_size="eyJwb3J0cmFpdCI6IjEifQ=="]